स्टील कंपनियां बनी एनपीए समस्या की विलेन
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शुक्रवार को सरकार की तरफ से सभी सरकारी बैंकों को कहा गया है कि वे कारपोरेट सेक्टर से कर्ज वसूली के लिए कोई कोताही नहीं बरते।
नई दिल्ली, (जागरण ब्यूरो)। फंसे कर्जे की जिस समस्या से सरकारी बैंकों की हालत पतली कर दी, आम जनता व उद्योग जगत को सस्ते कर्ज से महरुम किया, सरकार के खजाने पर चपत लगाई उस समस्या के लिए फिलहाल असली विलेन स्टील कंपनियां बनी हुई हैं।
हाल के महीनों की कोशिशों की वजह से बिजली और ढांचागत क्षेत्र की कंपनियों ने भी बैंकों को बकाये कर्ज को चुकाने की शुरुआत कर दी है लेकिन स्टील कंपनियां अपने बकाये कर्ज का बहुत ही कम हिस्सा लौटा रही हैं। बहरहाल, शुक्रवार को सरकार की तरफ से सभी सरकारी बैंकों को कहा गया है कि वे कारपोरेट सेक्टर से कर्ज वसूली के लिए कोई कोताही नहीं बरते। कानूनी दायरे में हर संभव कठोर कदम उठाये। वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में आज वित्त मंत्रालय के आला अधिकारियों और सरकारी बैंकों के प्रमुखों की शुक्रवार को हुई बैठक में ये निर्देश दिये गये।
जेटली ने बताया कि, ”फंसे कर्जे यानी एनपीए की समस्या और इससे निपटने को लेकर संभावित उपायों पर एक प्रेजेंटेशन सभी अधिकारियों के सामने पेश किया गया। अभी की स्थिति यह है कि स्टील क्षेत्र में सुधार की गति बहुत धीमी है। कुछ कंपनियों ही बकाये ब्याज का भुगतान शुरु किया है। ढांचागत क्षेत्र में सड़क निर्माण से जुड़ी कंपनियां को बहुत जल्द ही भुगतान शुरु होने के आसार हैं। उम्मीद की जाती है कि सरकार से भुगतान मिलने के बाद ये कंपनियां अपने बकाये कर्ज को चुकाना भी शुरु कर देंगी। लेकिन स्टील कंपनियां जब तक सभी ब्याज का भुगतान शुरु न कर दे उनकी संपत्तियों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।” बताते चले कि स्टील मंत्री बीरेन्द्र सिंह ने कुछ दिन पहले संसद में यह बताया कि देश की स्टील कंपनियों पर बैंकों के तीन लाख करोड़ रुपये बकाये हैं। पहले कहा गया था कि चीन से सस्ते आयात की वजह से घरेलू स्टील कंपनियों की हालत खराब है और वे प्रतिस्पद्र्धा में नहीं टिक पा रही हैं। इसके बाद सरकार ने स्टील की न्यूनतम आयात कीमत भी तय की लेकिन बहुत फर्क नहीं पड़ा है।
सरकारी बैंकों का कुल एनपीए जून, 2016 में लगभग 5.6 लाख करोड़ रुपये का रहा है। इसके लिए बैंकों को बहुत बड़ी राशि अपने मुनाफे से समायोजित करनी पड़ रही है। जून, 2016 को समाप्त तिमाही में सभी सरकारी बैंकों का संयुक्त तौर पर मुनाफा महज 222 करोड़ रुपये की रही है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान इन बैंकों ने 20,099 करोड़ रुपये के एनपीए की राशि का समायोजन अपने मुनाफे से किया था। अगर एनपीए की समस्या नहीं होती तो इस राशि का इस्तेमाल अपनी सेवा स्तर को सुधारने के लिए कर सकते थे जिससे आम जनता को फायदा होता।
जेटली ने संकेत दिए कि बैंक एनपीए घटाने के लिए कुछ नए विकल्पों पर विचार कर रहे हैं मसलन कर्ज नहीं लौटाने वाली कंपनियों की परिसंपत्तियों को बेचने के लिए विशेष व्यवस्था करना या एनपीए समायोजन के लिए वशेष फंड बनाना आदि। उन्होंने स्वीकार किया कि एनपीए खाता वाली कंपनियों की परिसंपत्तियों को बेचने के लिए बैंकों तो और कोशिश करनी होगी।
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