दिव्‍यांग के साथ रेलवे की नाइंसाफी, सहारा न होनेे पर मांगा जुर्माना

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ट्रेन में अकेले सफर करना पड़ा महंगा, टिकट चेकर ने मांगा जुर्माना

मुंबई। विक्टर राड्रिग्स काफी छोटी उम्र में ही स्वतंत्र रूप से चलने में असमर्थ हो गये थे पर क्रच की मदद से कोई भी ऐसा काम नहीं था जो वो कर नहीं सकते। 45 वर्षीय विक्टर खुद को हमेशा सक्षम मानते रहे और पूरी जिंदगी अपने सारे कामों को खुद ही किया। कभी भी खुद को अपाहिज या किसी पर आश्रित नहीं होने दिया। लेकिन गत हफ्ते कोंकण रेलवे ने उन्हें इस बात का अहसास करने पर मजबूर कर दिया।

देश में अभी भी दिव्यांगों के लिए दी जाने वाली बेसिक सुविधाओं में कमी है। लेकिन अभी दिए जा रहे कुछ रियायतों में से एक है रेलवे बुकिंग्स में ‘डिसेबल कोटा’। इसी कोटा के तहत विक्टर ने मुंबई से कर्नाटक के लिए मतस्यगंधा एक्सप्रेस में अपने व एस्कार्ट दोनों के लिए टिकट बुक कराया। पर इस यात्रा के दौरान उनका साथ देने के लिए परिवार का कोई सदस्य नहीं होने पर विक्टर ने अकेले जाने का निर्णय लिया क्योंकि अब तक वह खुद ही सभी कामों को करते थे। विक्टर रॉड्रिग्स को चलने के लिए क्रच की जरूरत होती है लेकिन वह किसी पर भी निर्भर नहीं हैं।

दिव्यांगों को सुविधा दिलाने की मांग

रेलवे ऐसा नहीं सोचती। 3 जून को विक्टर मुंबई वापस लौट रहे थे, तभी भटकल में टिकट चेकर ने जांच के लिए टिकट मांगा। उसने विक्टर से एस्कार्ट के बारे में पूछा और विक्टर ने कहा कि वे अकेले हैं।

विक्टर ने बताया, ‘जब मैंने उन्हें बताया कि मेरे साथ कोई एस्कार्ट नहीं तो उसने कहा मेरा टिकट कैंसिल हो गया। शाम का समय था और मैं वापिस नहीं जा सकता था इसलिए मैंने कहा कि मैं जुर्माना दूंगा।‘ इस तरह के नियम व्यक्ति के आत्मविश्वास को तोड़ते हैं।

उन्होंने आगे बताया, ‘आमतौर पर मेरी मां मेरे साथ यात्रा करती है, लेकिन वह देश से बाहर थी। मैंने अपने भाई से साथ चलने को कहा लेकिन उसे अवकाश नहीं मिल सकी और इसलिए मुझे अकेले ही जाना पड़ा। उडुपी जाने वक्त मुझसे एस्कार्ट के लिए नहीं पूछा गया। लेकिन लौटते समय मेरे साथ यह दिक्कत आयी।‘

विक्टर को न केवल इसलिए जुर्माना भरना पड़ा कि वो अकेले सफर कर रहे थे बल्कि एस्कार्ट के बेटिकट होने का भी उतना ही जुर्माना देना पड़ा।

विक्टर ने कहा, ‘मुझे रसीद दिया गया जिसमें लिखा गया कि एस्कार्ट न होने पर जुर्माना किया गया। इसके बाद बेटिकट होने का भी जुर्माना देना पड़ा जबकि मेरे पास टिकट थी। टिकट चेकर ने कहा एस्कार्ट के बिना यात्रा करने पर टिकट अवैध हो जाता है, लेकिन यह बात टिकट या आइआरसीटीसी की वेबसाइट पर कहीं भी नहीं दी गयी है। रेलवे को दिवयांग यात्रियों की मदद करनी चाहिए और उनकी स्वतंत्रता में अवरोध नहीं पैदा करना चाहिए।‘

पूरे देश में मान्य होंगे राज्यों के दिव्यांग प्रमाण पत्र

लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर उन्हें रिसीव करने आए भाई विल्सन ने कहा, ‘9 वर्ष की उम्र में ही अर्थराइटिस की वजह से विक्टर चलने में असमर्थ हो गए थे, लेकिन वे क्रच की सहायता से सारे काम खुद ही करते थे यहां तक कि गोरेगांव स्थित कॉलेज के लिए वे मुंबई लोकल से आते-जाते थे। वहां वे फिलॉसफी के छात्र रहे हैं। जब मैंने जुर्माने की बात सुनी तो हतप्रभ रह गया। हां उन्हें सामान के उठाने के लिए किसी और की जरूरत होती है पर वे मैनेज कर लेते हैं। रेलवे के इस नये नियम से अबतक स्वतंत्र रूप से जीने वाले किसी के आश्रित हो जाएंगे। मुझे अवकाश नहीं मिल सका मात्र इस वजह से वह अपनी यात्रा कैंसिल कर दें, यह तो मतलब नहीं बनता।‘

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