जानिए, क्या इस बार सूखे का असर पड़ेगा दाल की कीमतों पर
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देशभर में फैले सूखे को देखते हुए सरकारी एजेंसियों ने दालों की कीमतों को स्थिर रखने की तैयारियां शुरु कर दी है। इस कड़ी में खाद्य कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई), छोटे किसानों एग्री बिजनेस कंसोर्टियम (एसएफएसी) और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ ने दालों के बफर स्टॉक बनाना शुरु कर दिया है। एजेंसियों ने पिछले खरीफ और रबी सीजन में 1.1 लाख टन उड़द, तुअर व अरहर दालें खरीदी हैं। इसके अलावा इन एजेंसियां द्वारा दालों के बफर स्टॉक के लिए 50,000 टन दाल का आयात भी किया जा रहा है। फिलहाल अरहर की 11,000 और उड़द का 2,000 टन को पहले ही आयात किया जा चुका है, जबकि 6000 टन का बेड़ा शीघ्र ही आयात कर लिया जाएगा।
खाद्य मंत्रालय के मुताबिक 38.500 टन दालों का अनुबंध भी जल्द ही जारी किया जाएगा। इस बीच खाद्य मंत्रालय ने राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि दालों का आवंटन बफर स्टॉक से करें। साथ ही इसे इसे उचित मूल्य पर 120 प्रति किलो से अधिक न बेचें। मंगलवार को खाद्य, कृषि और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने बैठक कर आवश्यक वस्तुओं की कीमतों की समीक्षा की।
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पिछले साल सरकार ने करीब 1.5 लाख टन दालों की बफर स्टॉक जुटाने का फैसला किया था। ताकि दाल की तेजी से बढ़ती कीमतों के समय इन्हें घरेलू बाजार में बेचा जा सके। बता दें कि दालों की कीमतें विशेष रूप से अरहर और उड़द पिछले साल अगस्त के बाद से तेजी से बढ़ी हैं। देश के अधिकांश स्थानों मे तो अरहर की खुदरा कीमत 160 रूपए प्रति किलो को भी पार कर गई।
मंगलवार की बैठक के बाद उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने तमिलनाडु, आंध्र, महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना को उनके अनुरोध पर दालों की कुछ मात्रा आवंटित कर दी। दिल्ली में सफल व केन्द्रीय भंडार को दुकानों के माध्यम से बेचने के लिए दालें आवंटित की गई। अब तक इन एजेंसियों द्वारा 635.31क्विंटल अरहर और 245 क्विंटल उड़द की दाल को 120 रूपए प्रति किलो की दर से बेचा गया।
वित्त वर्ष 2015 में देश में दालों की पूर्ती के लिए ज्यादातर निजी पार्टियों द्वारा 4.5 करोड़ टन दाल का आयात किया गया था। जबकि पिछले वित्त वर्ष में आयात 4.1 मीट्रिक था। अनुमान लगाया गया है कि देश की दालों के उत्पादन कमजोर मानसून के कारण साल 2013-14 में 19.25 लाख टन से 2015-16 में 17.06 लाख टन तक गिर गया। देश में दालों की सालाना घरेलू खपत लगभग 22-23लाख टन है।
इस बीच महंगाई की समस्या से निपटने के लिए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने पहले से ही तैयारियां शुरु कर दी है। लिहाजा मंत्रालय ने घरेलू और वैश्विक बाजार में प्रमुख कृषि जिंसों की उपलब्धता के लिए एक स्वतंत्र एजेंसियों की संलिप्तता पर जोर दिया है।
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