उत्पादन बढ़ा तो पीडीएस के दायरे में आ सकती हैं दालें

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उत्पादन बढ़ा तो पीडीएस के दायरे में आ सकती हैं दालें

इस संबंध में सरकार का निर्णय देश में दालों का उत्पादन और उपलब्धता बढ़ने पर निर्भर करेगा। दाल उत्पादन को बढ़ावा देने के उपायों पर विचार कर रही मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । गरीबों को महंगाई की मार से राहत दिलाने तथा कुपोषण से लड़ने के लिए सरकार दालों को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के दायरे में ला सकती है। इस संबंध में सरकार का निर्णय देश में दालों का उत्पादन और उपलब्धता बढ़ने पर निर्भर करेगा। दाल उत्पादन को बढ़ावा देने के उपायों पर विचार कर रही मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में भी इस संबंध में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा की जरूरत पर बल दिया है।

समिति ने शुक्रवार को ही अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्री अरुण जेटली को सौंपी है। रिपोर्ट का कहना है कि दालों को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे में लाने के संबंध में विचार किया जा सकता है। फिलहाल कुछ राज्य पीडीएस के तहत गरीबों को दाल भी वितरित करते हैं। पीडीएस के तहत दालों को वितरित करने पर राजकोषीय लागत और क्रियान्वयन की चुनौतियां पेश आएंगी लेकिन इससे पोषण का लाभ होगा और दीर्घावधि में दलहन के पक्ष में जनमत तैयार होगा।

सरकार ने दाल की बफर स्टॉक लिमिट को बढ़ाकर 20 लाख टन किया

रिपोर्ट में हालांकि कहा गया है कि पीडीएस के तहत दालों का वितरण तभी हो सकता है जब उपलब्धता पर्याप्त हो। अन्यथा बाजार में उपलब्धता घट सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस विचार के साथ आगे कदम बढ़ाने से पहले राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर विचार विमर्श जरूरी होगा।

फिलहाल देश में दलहन का उत्पादन कम है जबकि मांग काफी ज्यादा है। कृषि वर्ष 2015-16 में दलहन उत्पादन 1.7 करोड़ टन से अधिक रहने का अनुमान है जो घरेलू मांग के मुकाबले काफी कम है। यही वजह है कि देश को दाल की आपूर्ति पूरी करने को 50 लाख टन से अधिक दाल का आयात करना पड़ा है। इस स्थिति को देखते हुए ही रिपोर्ट में दलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य मंे खासी वृद्धि करने की सिफारिश की है।

दालों का एमएसपी बढ़ने में बाधक नहीं डब्ल्यूटीओ समझौता

विश्र्व व्यापार संगठन के माध्यम से धनाढ्य देश भले ही विकासशील देशों पर विभिन्न फसलों के एमएसपी में अधिक वृद्धि न करने का दबाव बना रहे हों लेकिन भारत में दलहन न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि पर डब्ल्यूटीओ के समझौते का कोई असर नहीं पड़ेगा। हकीकत तो यह है कि दलहन फसलों की पर्यावरण के प्रति अनुकूलता की वजह से डब्ल्यूटीओ की ग्रीन बॉक्स सब्सिडी की नीति के तहत दालों के एमएसपी में खासी वृद्धि का रास्ता बन सकता है।

सूत्रों ने कहा कि सुब्रमण्यम समिति ने दालों के एमएसपी में जिस स्तर की वृद्धि करने की सिफारिश की है उससे डब्ल्यूटीओ के समझौते का उल्लंघन नहीं होगा। एक तो यह प्रस्तावित एमएसपी वैश्रि्वक कीमतों से कम होगा और दूसरे यह डब्ल्यूटीओ के ग्रीन बॉक्स सब्सिडी के दायरे में आएगा। साथ ही दालें मूलभूत अनाज के दायरे में आती हैं। इसलिए आने वाले वर्षो में भी दालांे के एमएसपी में वृद्धि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

दालों के बफर स्टॉक पर साढ़े 18 हजार करोड़ का खर्च

उल्लेखनीय है कि सुब्रमण्यम समिति ने उड़द और अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2018 तक 7000 रुपये प्रति क्विंटल करने की सिफारिश की है। वहीं आगामी रवी मौसम के लिए चने का एमएसपी बढ़ाकर 40 रुपये करने की सिफारिश भी समिति ने की है।

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